Baglamukhi

Secret of Mantras and Tantras | Dus Mahavidya Mantra

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Devi Baglamukhi Pitambara Peeth

भगवती बगलामुखी के अनेक भेद हैं। वे जगदम्बा, सर्वेश्वरी,सर्वदेवाराध्या, परात्पर, पराशक्ति, महाविद्या एवं ब्रह्मास्त्र हैं। उनका स्वरूप
इस प्रकार है –

मध्ये सुधाब्ध्मिणि-मण्डप-रत्न वेद्यां,
सिंहासनो-परिगतां परिपीत-वर्णाम्।
पीताम्बराभरण-माल्य-विभूषितांगीं
देवीं भजामि धृत-मुद्गर-वैरि-जिह्वाम् ।।
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं
वामे् परिपीड़यन्तीम्।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन्
पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि।।

यह महाविद्या अभिचारिक कर्मों की सिद्धियों एवं प्रयोगों को केन्द्रित करके प्रवर्तित नहीं हुई है, क्योंकि इससे ज्ञान, शक्ति, वैराग्य तथा मोक्ष की प्राप्ति भी होती है, जैसा कि कहा भी गया है –

” ज्ञानं  शक्तिं च वैराग्यं लभते च सुनिश्चितम्।”  

यह महाविद्या समस्त विद्याओं का प्रभाव नष्ट करके अपना प्रभाव दिखाती है –

“ग्रसनी सर्वविद्यानां बगलैकैव भूतले।”

इस महाशक्ति की साधना करके साधक को मुक्ति भी मिल जाती है, वह जीवन-चक्र से मुक्त हो जाता है –

“जीवन्मुक्तः स एवात्र स सिद्धो  नात्र संशयः।”

भगवती बगला परब्रह्मरूपा हैं। वे सर्वशक्तिस्वरूप सर्वाकार पराशक्ति हैं। अतः वे ही भैरवी, भद्रकाली, मातंगी, त्रिपुरा, कामेशी, श्रीविद्या और
विश्व को आश्रय प्रदान करने वाली हैं। इसीलिए प्रत्येक साधक उनकी शरण में आश्रय ग्रहण करना चाहता है।

मातर्भैरवी, भद्रकाली, विजये, वाराहि, विश्वाश्रये!
श्रीविद्ये, समये, महेशि, बगले, कामेशी, वामे, रमे!
मातंगि, त्रिपुरे, परात्परपरे, स्वर्गापवर्गप्रदे!
दासोऽहं शरणागतो ऽस्मि कृपया विश्वेश्वरि! त्राहि माम्।। 

 शत्रुओं का संहार करने, उनकी गतिविधियों तथा उनके अनर्गल वार्तालाप को रोकने, उनके द्वारा अपने विरुद्ध रचे जाने वाले षड्यन्त्र को रोककर उन्हें दण्ड देने के लिए ब्रह्मास्त्र से श्रेष्ठ कोई अस्त्र नहीं और ब्रह्मास्त्र विद्या से बढ़कर कोई अन्य विद्या नहीं है। यह ब्रह्मास्त्र-विद्या षट्कर्मों (शान्ति, मोहन, वशीकरण, विद्वेषण, उच्चाटन तथा मारण) से सम्बन्धित प्रयोगों से युक्त, समस्त अन्य विद्याओं को प्रभावहीन करने वाली तथा त्रिशक्तियों (तारा, काली तथा त्रिपुरसुन्दरी) की शक्तियों से युक्त है। ”बगलामुखी“ नाम वाली इस स्तम्भन विद्या के बिना शान्ति, वशीकरण, मोहन, आकर्षण, विद्वेषण, मारण, भ्रान्ति तथा उद्वेग आदि से सम्बन्धित कोई भी प्रयोग पूर्णतया सफल नहीं होते। ब्रह्मा जी के द्वारा प्रकट की गयी इस वाक् स्तम्भिनी महाविद्या के बिना ग्रहण की गयी अन्य कोई भी विद्या सिद्ध नहीं होती। अपने साधकों के लौकिक शत्रुओं का विनाश करने वाली भगवती बगला अनाधिकारियों से, उन्हें असफलता देकर अपनी विद्या की रक्षा करने वाली है। अपने साधकों पर अन्य देवता-मन्त्र से उत्पन्न अनिष्ट प्रभावों को नष्ट करने वाली, शत्रु साधक के मन्त्र-यन्त्र जैसी साधन सामग्रियों को छिन्न-भिन्न करने वाली तथा
अन्य साधक द्वारा किए अन्य देवता सम्बन्धित मन्त्र-प्रयोगों से उत्पन्न अभिचार कर्मों के प्रभावों को नष्ट करने वाली है।

इस कलियुग में जो मनुष्य सर्वत्र विजय के अभिलाषी हैं, समाज के लिए हानिकारक प्राणियों का विनाश करना चाहते हैं अथवा क्रूर एवं हिंसक पशुओं को वश में करके उन पर विजय चाहते हैं, उन सबकी पूर्ति का उपाय रूप यह ब्रह्मास्त्र विद्या ही सर्वश्रेष्ठ है।

भगवती बगला को लोग तामसी शक्ति अथवा प्रबल शत्रु-संहारक शक्ति मानते हैं, जो उचित नहीं है। वास्तविकता यह है कि इस महाशक्ति के सभी प्रयोगों  से अभिचारिक कृत्यों से रक्षा कर्म की प्रधानता प्रकट होती है। कृत्या विशेष का भूमि में गड़न्त, पुत्तल-प्रयोगों द्वारा अभिचार कर्म, होम द्वारा अथवा अन्य किसी भी अभिचार कर्म के द्वारा जो भी प्रयोग विनाश के लिए किए गए हों, उन्हें नष्ट करने वाली वैष्णवी महाशक्ति ही बगलामुखी हैं।

आज जिन महाविद्या को हम ‘बगलामुखी’ नाम से जानते हैं, उनका वास्तविक नाम है – ‘वल्गा’ , जिसका अर्थ होता है ‘लगाम’। जिस प्रकार लगाम का प्रयोग करके घोड़े की शक्ति को, उसके क्रिया-कलाप को रोक दिया जाता है, ठीक उसी प्रकार अभिचार जैसी क्रियाओं को अथवा अन्य विपरीत शत्रुजन्य गतिविधियों को काबू में करने वाली, उन्हें स्तम्भित करने वाली शक्ति का नाम ही वल्गा है। इनकी कृपा से शत्रुओं की शारीरिक, मानसिक एवं वाचिक (गति, मति एवं बुद्धि) प्रक्रियाओं को स्तम्भित कर दिया जाता है। केवल अभिचार कर्मों के स्तम्भन अथवा उनसे रक्षा के लिए ही नहीं बल्कि पारिवारिक, मानसिक, सामाजिक उन्नति के लिए, वाद-विवाद, न्यायालय में विजय प्राप्ति के लिए तथा चुनाव आदि में विजय प्राप्ति के लिए भी इस महाविद्या का प्रयोग सर्वोच्च माना जाता है।

प्राणियों के शरीर में ‘अथर्वा’ नाम का एक प्राणसूत्र निकलता है। प्राण के रूप में होने के कारण हम इसे देखने में असमर्थ रहते हैं। यह अथर्वा एक प्रकार से वायरलेस टेलीग्राफी है। आपने कभी महसूस किया होगा कि एक ऐसा व्यक्ति जिसे आपसे गहन स्नेह है और आपकी भी उसके प्रति यही स्थिति है। वो आपसे कई सौ मील दूर रहता है। उसे वहां कोई दुख या कष्ट होता है। आपको इसकी कोई सूचना नहीं है लेकिन आपको भी व्याकुलता होने लगती है, आप परेशान हो उठते हैं। इस प्रकार ऐसी कोई न कोई शक्ति अवश्य है जिसके माध्यम से आप व्याकुल हो उठे हैं। बस उसी परोक्ष शक्ति का नाम अथर्वा है। इस शक्ति के सूत्र से हजारों कोस दूर रहते व्यक्ति का आकर्षण किया जा सकता है। आपके यहां कोई सम्बन्धी आने वाला होता है, उसका ज्ञान आपको नहीं होता, लेकिन आपकी छत अथवा आंगन की दीवार पर कौआ बोलने लगता है। इसी प्रकार जिस अथर्वा शक्ति को हम नहीं पहचानते, कुत्ता उसे पहचान लेता है। उसी शक्ति-ज्ञान के प्रभाव से वह जमीन को सूंघता हुआ भागे हुए चोर का पता लगा लेता है। जिस रास्ते से चोर जाता है, उस रास्ते में उसका अथर्वा प्राण वासना रूप में मिट्टी में मिल जाता है।वस्त्रा, नाखून, बाल आदि में वह प्राण वासना रूप में प्रतिष्ठित रहता है। इन वस्तुओं के आधार पर किसी भी प्राणी पर मनमाना प्रयोग किया जा सकता है। ‘अथर्ववेद’ के घोरांगिरा व अथर्वांगिरा नाम के दो भेद हैं। इनमें घोरांगिरा में औषधि वनस्पति विज्ञान है और अथर्वांगिरा में अभिचार-प्रयोग है। इसका उसी अथर्वा सूत्रा से सम्बन्ध है। यह जो अथर्वा सूत्र है, बस इसी शक्ति का नाम ”वल्गामुखी“ है। यह इसका वैदिक नाम है।

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